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'आक' बनेगा कमाई का जरिया, जैकेट, दस्ताने और कपड़ों समेत दर्जनों उत्पाद बन रहे : रूमा देवी

  • Writer: Ravi Jaipal
    Ravi Jaipal
  • 7 days ago
  • 3 min read

निट्रा और रूमा देवी फाउंडेशन के बीच एम ओ यु पर हस्ताक्षर


M.S. Parmar & Ruma Devi Singed MoU
M.S. Parmar & Ruma Devi Singed MoU

राजस्थान की मरुधरा में उगने वाले 'आक' के पौधे अब केवल रेगिस्तानी वनस्पति नहीं रहे, बल्कि ग्रामीण रोजगार और सस्टेनेबल फैशन की नई क्रांति का आधार बन रहे हैं। वस्त्र मंत्रालय के उत्तर भारत वस्त्र अनुसंधान संघ द्वारा आक के पौधे जिन्हें एक खरपतवार की तरह देखा जाता आ रहा है, उसके रेशों से सर्दीयों के कपडे, दस्ताने व जुराब समेत बर्फिले ईलाकों के लिए टेन्ट भी बनाए जा रहे हैं।


नवंबर 2025 में वस्त्र मंत्री गिरिराज सिंह के निट्रा में आक की फसलों का निरक्षण करने के बाद इस परियोजना को तेजी मिली, इस दिशा में एक बड़ा कदम उठाते हुए वस्त्र मंत्रालय से संबद्ध उत्तर भारत वस्त्र अनुसंधान संस्थान निट्रा के महानिदेशक एम एस परमार तथा रूमा देवी फाउंडेशन की निदेशक विश्व प्रसिद्ध फैशन डिजाइनर व समाज सेविका डॉ. रूमा देवी ने गाजियाबाद स्थित वस्त्र अनुसंधान केंद्र में एक एम ओ यु पर हस्ताक्षर किए।


इस साझेदारी का मुख्य उद्देश्य राजस्थान में बहुतायत में पाए जाने वाले 'आक' के फल 'आक-पाडिया' से उच्च गुणवत्ता वाला रेशा तैयार कर आक की खेती पर अनुसंधान व तकनीकी विकास के साथ साथ देश विदेश में आक से बने उत्पादों को प्रचलित करना है। ताकि ग्रामीण क्षेत्र का सामाजिक एवं आर्थिक विकास हो सके।

क्या है आक में ऐसे खास ?

अब तक बेकार समझे जाने वाले आक के फल से निकलने वाला रेशा ऊन से भी ज्यादा गर्म और रेशम जैसा मुलायम होता है। आक के तने से भी रेशा निकला जाता है व फल की खाल भी काफ़ी उपयोगी होती है, साथ ही आक में काफ़ी औषधीय गुण भी होते है। आक के बीज से तेल निकाला जाता है, जिसका इस्तेमाल फेसियल क्रीम बनाने में किया जाता है। आक का पौधा कम पानी व विपरीत परिस्थतियों में भी जीवित रहता है व एक एकड़ में 200 से 300 किलो तक फसल का उत्पादन किया जा सकता है.


Hands cradle a split milkweed pod, revealing its soft fibres and numerous seeds, highlighting the intriguing textures and natural bounty of the plant.
Hands cradle a split milkweed pod, revealing its soft fibres and numerous seeds, highlighting the intriguing textures and natural bounty of the plant.

आक से बने रेशो की माँग इसकी आपूर्ति से कहीं अधिक है। वस्त्र मंत्रालय की सहायता से निट्रा के महानिदेशक एम एस परमार अपनी आधुनिक प्रयोगशालाओं में इस रेशे की गुणवत्ता, मजबूती और इससे कपड़े बनाने की तकनीकी प्रक्रिया पर काम कर रहे है।


फाउंडेशन की निदेशक डाॅ रुमा देवी ने बताया कि आक के पौधे के औषधीय व धार्मिक महत्व के पश्चात अब आक के पौधे की इतनी व्यवसायिक उपयोगिता देख कर बहुत ख़ुशी हुई, चूंकि आक के पौधे क्षेत्र में बहुतायत में उपलब्ध हैं, आक की खेती किसानों के लिए रोजगार का बहुत अच्छा साधन बनेगी। आक के रेशे से जैकेट, दस्ताने, कंबल और कपड़ों समेत दर्जनों उत्पाद बन रहे हैं। अब इसे विश्व व्यापी पहचान दिलाई जाएगी।


यह पहल न केवल 'वोकल फॉर लोकल' को बढ़ावा देगी बल्कि क्रूरता-मुक्त और पर्यावरण के अनुकूल फैशन को वैश्विक मंच पर प्रचलित करेगी करेगी।


प्रारंभिक चरण में 2000 किलो आक का रेशा सफलतापूर्वक हुआ एकत्रित


पिछली गर्मीयो में वस्त्र मंत्री गिरिराज सिंह की पहल पर रूमादेवीफाउंडेशन ने बाड़मेर जोधपुर जैसलमेर बिकानेर व नागौर से 2000 किलो आक पाडीए एकत्रित करने का बीङा उठाया। इस पहल से किसान परिवारो को बिना लागत के खेतो में अपने आप उगे आक से पोड इकट्ठे कर घर से ही रोजगार मिलने लग गया। प्रारंभिक चरण की सफलता के बाद अब इसकी जागरूकता बढ़ाने पर काम किया जाएगा।


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रूमा देवी ने बताया कि होली के आसपास आक पर रेशा पककर तैयार होने लगता है। इसके लिए आवश्यक प्रशिक्षण प्रारंभ किए जाएगें।


एम ओ यू हस्ताक्षर समारोह में डॉ. एमएस परमार महानिदेशक, निट्रा, डॉ रूमा देवी, निदेशक रूमा देवी फाउंडेशन के साथ रूमा देवी फाउंडेशन की और से विक्रम सिंह, प्रवक्ता हर्षिता सिंह व निट्रा की और से डॉ प्रीति व टीम उपस्थित रही।

 
 
 

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